कुंडली के बारह घर में सूर्य का फल
लग्न में सूर्य हो तो जातक स्वाभिमानी, क्रोधी, पित्त, वात रोगी, चंचल, प्रवासी, अस्थिर संपत्ति वाला होता है। 2. कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य हो तो संपत्तिवान, भाग्यवान, झगडालू, नेत्र, मुख एवं दंत रोगी, स्त्री के लिए कुटुंब से झगड़ने वाला होता है। 3. तीसरे भाव में सूर्य हो तो पराक्रमी, प्रतापशाली, राजमान्य, बंधुहीन होता है। 4. चौथे भाव में सूर्य हो तो जातक चिंताग्रस्त, परम सुंदर, पितृधन नाशक, भाइयों से बैर रखने वाला, गुप्त विद्या प्रिय एवं वाहन का सुख होता है। 5. पांचवें भाव में सूर्य होने से जातक अल्प संततिवान, सदाचारी, बुद्धिमान एवं क्रोधी होता है। 6. छठे भाव में सूर्य होने से जातक शत्रुनाशक, तेजस्वी, मातृ कष्टकारक, न्यायवान होता है। 7. सातवें भाव में सूर्य होने से स्त्री क्लेश कारक, स्वाभिमानी, आत्मरत, चिंतायुक्त होता है। 8. आठवें भाव में सूर्य होने से पित्त रोगी, क्रोधी, धनी, धैर्यहीन होता है। 9. नौवें भाव में सूर्य होने से प्रतापी, व्यवसायकुशल, राजमान्य, लब्धप्रतिष्ठित, राजमंत्री, उदार एवं ऐश्वर्य संपन्न होता है। 10. दसवें भाव में सूर्य होने से स्त्री क्लेश कारक, स्वाभिमानी, आत्मरत, चिंतायुक्त होता है। 11. सूर्य ग्यारहवें भाव में हो तो जातक धनी, बलवान, सुखी, स्वाभिमानी, मितभाषी, अल्पसंततिवान होता है। 12. बारहवें भाव में सूर्य हो तो उदासीन, मस्तिष्क रोगी, नेत्र रोगी, आलसी एवं मित्र द्वेषी होता है।
कुंडली के बारह भाव में चंद्र का फल
लग्न में चंद्रमा हो तो जातक बलवान, ऐश्वर्यशाली, सुखी, व्यवसायी, गायन-वाद्य प्रिय एवं स्थूल शरीर होता है। 2. दूसरे भाव में चंद्र हो तो मधुरभाषी, सुंदर, भोगी, परदेशवासी, सहनशील एवं शांति प्रिय होता है। 3. तीसरे भाव में चंद्र हो तो पराक्रम से धन प्राप्ति, धार्मिक, यशस्वी, प्रसन्न, आस्तिक एवं मधुरभाषी होता है। 4. चौथे भाव में हो तो दानी, मानी, सुखी, उदार, रोगरहित, विवाह के पश्चात कन्या संततिवान, सदाचारी, सट्टे से धन कमाने वाला एवं क्षमाशील होता है। 5. पांचवें भाव में चंद्र हो तो शुद्ध बुद्धि, चंचल, सदाचारी, क्षमावान तथा शौकीन होता है। 6. छठे भाव में चंद्रमा होने से कफ रोगी, नेत्र रोगी, अल्पायु, आसक्त, व्ययी होता है।7. चंद्रमा सातवें स्थान में होने से सभ्य, धैर्यवान, नेता, विचारक, प्रवासी, जलयात्रा करने वाला, अभिमानी, व्यापारी, वकील एवं स्फूर्तिवान होता है। 8. आठवें भाव में चंद्रमा होने से विकारग्रस्त, कामी, व्यापार से लाभ वाला, वाचाल, स्वाभिमानी, बंधन से दुखी होने वाला एवं ईर्ष्यालु होता है। 9. नौंवे भाव में चंद्रमा होने से जातक संतति, संपत्तिवान, धर्मात्मा, कार्यशील, प्रवास प्रिय, न्यायी, विद्वान एवं साहसी होता है। 10. दसवें भाव में चंद्रमा होने से कार्यकुशल, दयालु, निर्मल बुद्धि, व्यापारी, यशस्वी, संतोषी एवं लोकहितैषी होता है। 11. ग्यारहवें भाव में चंद्रमा होने से चंचल बुद्धि, गुणी, संतति एवं संपत्ति से युक्त, यशस्वी, दीर्घायु, परदेशप्रिय एवं राज्यकार्य में दक्ष होता है। 12. बारहवें भाव में चंद्रमा होने से नेत्र रोगी, कफ रोगी, क्रोधी, एकांत प्रिय, चिंतनशील, मृदुभाषी एवं अधिक व्यय करने वाला होता है।
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कुंडली के बारह भाव में मंगल का फल
लग्न में मंगल हो तो जातक क्रूर, साहसी, चपल, महत्वाकांक्षी एवं व्रणजन्य कष्ट से युक्त एवं व्यवसाय में हानि होती है। 2. दूसरे भाव में मंगल हो तो कटुभाषी, धनहीन, पशुपालक, धर्मप्रेमी, नेत्र एवं कर्ण रोगी होता है। 3. तीसरे भाव में मंगल हो तो जातक प्रसिद्ध शूरवीर, धैर्यवान, साहसी, भ्रातृ कष्टकारक एवं कटुभाषी होता है। 4. चौथे भाव में मंगल हो तो वाहन सुखी, संततिवान, मातृ सुखहीन, प्रवासी, अग्नि भययुक्त एवं लाभयुक्त होता है। 5. पांचवें स्थान में मंगल हो तो जातक उग्रबुद्धि, कपटी, व्यसनी, उदर रोगी, चंचल, बुद्धिमान होता है।6. छठे भाव में हो तो बलवान, धैर्यशाली, शत्रुहंता एवं अधिक व्यय करने वाला होता है। 7. सातवें भाव में मंगल हो तो स्त्री दुखी, वात रोगी, शीघ्र कोपी, कटुभाषी, धननाशक एवं ईर्ष्यालु होता है। 8. आठवें भाव में मंगल हो तो जातक व्याधिग्रस्त, व्यसनी, कठोरभाषी, उन्मत्त, नेत्र रोगी, संकोची एवं धन चिंतायुक्त होता है। 9. मंगल नौवें स्थान में हो तो द्वैषी, अभिमानी, क्रोधी, नेता, अधिकारी, ईर्ष्यालु एवं अल्प लाभ करने वाला होता है। 10. मंगल दसवें भाव में हो तो धनवान, कुलदीपक, सुखी, यशस्वी, उत्तम वाहनों का सुख पाने वाला लेकिन संततिकष्ट वाला होता है।11. ग्यारहवें भाव में मंगल हो तो जातक कटुभाषी, क्रोधी, लाभ करने वाला, साहसी, प्रवासी एवं धैर्यवान होता है। 12. बारहवें भाव में मंगल हो तो जातक नेत्र रोगी, स्त्री नाशक, उग्र, व्ययशील एवं ऋणी होता है।
कुंडली के बारह भाव में बुध का फल
जिस जातक के लग्न में बुध होता है वह अपने पूरे जीवन को व्यवस्थित करता हुआ उन्नति की ओर अग्रसर होता है। उसकी बुद्धि श्रेष्ठ होती है। उसका शरीर स्वर्ण के समान कांतिवाला और वह प्रसन्नचित्त प्राणी होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु, गणितज्ञ, विनोदी, उदार व मितभाषी होता है। 2. दूसरे भाव में हो तो वह बुद्धिमान तथा परिश्रमी होता है। सभा आदि में भाषण द्वारा वह जनता को मंत्रमुग्ध कर सकता है। 3. तीसरे भाव में हो तब ऐसा व्यक्ति व्यापारी से मित्रता स्थापित करने वाला होता है। व्यापारादि कार्यों में उसकी बहुत रुचि होती है।4. चौथे भाव में हो तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है। राज्य में उसकी प्रतिष्ठा तथा मित्रों से सम्मान होता है। 5. पांचवे भाव में हो तो उसे संतान सुख का अभाव रहता है। यदि होता भी है तो वृद्धावस्था में पुत्र लाभ प्राप्त होता है। 6. छठे भाव में हो तो उसका अन्य मनुष्यों के साथ विरोध रहता है। 7. सातवें भाव में हो तो वह स्त्री के लिए सुखदायक होता है। 8. आठवें भाव में हो तो उस व्यक्ति की उम्र लंबी होती है। यह देश-विदेश में भी ख्याति लाभ दिलाता है। 9. नौवें भाव में हो तो मनुष्य धार्मिक कार्यों में रुचि लेने वाला, बुद्धिमान, तीर्थ आदि करने वाला होता है। तथा घर का कुलदीपक भी होता हैं। 10. दसवें भाव में हो तो ऐसा जातक पिता द्वारा अर्जित धन प्राप्त करता है। 11. ग्यारहवें भाव में हो तो वह व्यक्ति को बहुत सारी संपत्ति का मालिक बनाता है। ऐसा व्यक्ति लेखक या कवि भी होता है। 12. बारहवें भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति विद्वान होते हुए भी आलसी होता है।
कुंडली के बारह भाव में गुरु का फल
जिस जातक के लग्न में गुरु (बृहस्पति) होता है। ऐसा जातक अपने गुणों से चारों ओर आदर की दृष्टि से देखा जाता है। 2. दूसरे भाव में हो तो जातक कवि होता है। उसमें राज्य संचालन करने की शक्ति होती है। 3. तीसरे भाव में हो तो वह जातक नीच स्वभाव का बना देता है। साथ ही उसे सहोदर भ्राताओं का सुख भी प्राप्त होता है। 4. चौथे भाव में हो तो व्यक्ति लेखक, प्रवासी, योगी, आस्तिक, कामी, पर्यटनशील तथा विदेश प्रिय तथा महिलाओं के पीछे-पीछे घूमने वाला होता है। 5. पांचवे भाव में हो तो ऐसा जातक विलासी तथा आराम प्रिय होता है। 6. छठे भाव में हो तो ऐसा जातक सदा रोगी रहता है। मुकदमें आदि में जीत हासिल करता है। तथा अपने शत्रुओं को मुंह के बल गिराने की क्षमता रखता है। 7. सातवें भाव में हो तो बुद्धि श्रेष्ठ होती है। ऐसा व्यक्ति भाग्यवान, नम्र, धैर्यवान होता है। 8. आठवें भाव में हो तो दीर्घायु होता है तथा ऐसा जातक अधिक समय तक पिता के घर में नहीं रहता है। 9. नौवें भाव में हो तो सुंदर मकान का निर्माण करवाता है। ऐसा जातक भाई-बंधुओं से स्नेह रखने वाला होता है तथा राज्य का प्रिय होता है। 10. दसवें भाव में हो तो जातक को भूमिपति एवं भवन प्रेमी बना देता है। ऐसे व्यक्ति चित्रकला में निपुण होते है। 11. ग्यारहवें भाव में हो तो जातक ऐश्वर्यवान, पिता के धन को बढ़ाने वाला, व्यापार में दक्षता लिए होता है। 12. बारहवें भाव में हो तो ऐसा जातक आलसी, कम खर्च करने वाला, दुष्ट स्वभाव वाला होता है। लोभी-लालची भी होता है।
कुंडली के बारह भाव में शुक्र का फल
लग्न में शुक्र हो तो जातक दीर्घायु सुंदर, ऐश्वर्यवान, मधुर भाषी, भोगी, विलासी, प्रवासी और विद्वान होता है। 2. दूसरे भाव शुक्र हो तो धनवान, यशस्वी, साहसी, कवि एवं भाग्यवान होता है। 3. तीसरे भाव में शुक्र हो तो धनी, कृपण, आलसी, चित्रकार, पराक्रमी, विद्वान, भाग्यवान एवं पर्यटनशील होता है। 4. चौथे भाव में शुक्र हो तो जातक बलवान, परोपकारी, आस्तिक, सुखी, भोगी, पुत्रवान एवं दीर्घायु होता है। 5. पांचवें भाव में शुक्र हो तो सद्गुणी, न्यायप्रिय, आस्तिक, दानी, प्रतिभाशाली, वक्ता एवं व्यवसायी होता है। 6. छठे भाव में शुक्र हो तो जातक स्त्री सुखहीन, बहुमित्रवान, दुराचारी, वैभवहीन एवं मितव्ययी होता है। 7. सातवें भाव में शुक्र हो तो स्त्री से सुखी, उदार, लोकप्रिय, धनिक, विवाह के बाद भाग्योदयी, अल्पव्याभिचारी एवं विलासी होता है। 8. आठवें भाव में शुक्र हो तो निर्दयी, रोगी, क्रोधी, ज्योतिषी, मनस्वी, पर्यटनशील एवं परस्त्रीरत होता है। 9. नौवें भाव में शुक्र हो तो आस्तिक, गृहसुखी, प्रेमी, दयालु, तीर्थस्थानों की यात्रा करने वाला, राजप्रिय एवं धर्मात्मा होता है। 10. दसवें भाव में शुक्र हो तो विलासी, ऐश्वर्यवान, न्यायवान, धार्मिक, गुणवान एवं दयालु होता है। 11. ग्यारहवें भाव में शुक्र हो तो जातक विलासी, वाहनसुखी, स्थिर लक्ष्मीवान, परोपकारी, धनवान, कामी एवं पुत्रवान होता है। 12. बारहवें भाव में शुक्र हो तो न्यायशील, आलसी, पतित, परस्त्रीरत, धनवान एवं मितव्ययी होता है।
कुंडली के बारह भाव में शनि का फल
लग्न में शनि मकर तथा तुला का हो तो जातक धनाढ्य, सुखी और अन्य राशियों का हो तो दरिद्रवान होता है।2. दूसरे भाव में हो तो कटुभाषी और कुंभ या तुला का शनि हो तो धनी, कुटुंब तथा भ्रातृवियोगी, लाभवान होता है। 3. तीसरे भाव में हो तो निरोगी, योगी, विद्वान, चतुर, विवेकी, शत्रुहंता होता है। 4. चौथे भाव में हो तो बलहीन, अपयशी, शीघ्रकोपी, धूर्त, भाग्यवान होता है। 5. पांचवें भाव में हो तो वात रोगी, भ्रमणशील, विद्वान, उदासीन, संतानयुक्त एवं चंचल होता है। 6. छठे भाव में शनि हो तो शत्रुहंता, कवि, भोगी, कंठ व श्वांस रोगी, जातिविरोधी होता है। 7. सातवें भाव में हो तो क्रोधी, धनहीन, सुखहीन, भ्रमणशील, स्त्रीभक्त, विलासी एवं कामी होता है।8. आठवें भाव में हो तो कपटी, वाचाल, डरपोक, धूर्त एवं उदार प्रवृत्ति का होता है। 9. नौवें भाव में हो तो प्रवासी, धर्मात्मा, साहसी, भ्रातृहीन एवं शत्रुनाशक होता है। 10. दसवें भाव में हो तो नेता, न्यायी, विद्वान, ज्योतिषी, अधिकारी, महत्वाकांक्षी एवं धनवान होता है। 11. ग्यारहवें भाव में हो तो दीर्घायु, क्रोधी, चंचल, शिल्पी, सुखी, योगी, पुत्रहीन एवं व्यवसायी होता है।12. बारहवें भाव में शनि हो तो जातक व्यसनी, दुष्ट, कटुभाषी, अविश्वासी, मातृ कष्टदायक, अल्पायु एवं आलसी होता है
कुंडली के बारह भाव में राहु का फल
लग्न में राहु हो तो जातक दुष्ट, मस्तिष्क रोगी, स्वार्थी, राजद्वेषी, कामी एवं अल्पसंतति वाला होता है। 2. दूसरे भाव में राहु हो तो परदेशगामी, अल्पसंतति, अल्प धनवान होता है। 3. तीसरे भाव में राहु हो तो बलिष्ठ, विवेकयुक्त, प्रवासी, विद्वान एवं व्यवसायी होता है। 4. चौथे भाव में हो तो असंतोषी, दुखी, मातृ क्लेशयुक्त, क्रूर, कपटी एवं व्यवसायी होता है। 5. पांचवें भाव में हो तो उदर रोगी, मतिमंद, धनहीन, भाग्यवान एवं शास्त्र प्रिय होता है। 6. छठे भाव में विधर्मियों द्वारा लाभ, निरोग, शत्रुहंता, कमर दर्द पीड़ित, अरिष्ट निवारक एवं पराक्रमी होता है। 7. सातवें भाव में हो तो स्त्री नाशक, व्यापार में हानिदायक, भ्रमणशील, वातरोग जनक, लोभी एवं दुराचारी होता है। 8. आठवें भाव में राहु हो तो पुष्टदेही, क्रोधी, व्यर्थ भाषी, उदर रोगी एवं कामी होता है। 9. नौवें भाव में राहु हो तो प्रवासी, वात रोगी, व्यर्थ परिश्रमी, तीर्थाटनशील, भाग्यहीन एवं दुष्ट बुद्धि होता है। 10. दसवें भाव में राहु हो तो आलसी, वाचाल, मितव्ययी, संततिक्लेशी तथा चंद्रमा से युत हो तो राजयोग कारक होता है। 11. ग्यारहवें भाव में राहु हो तो मंदमति, लाभहीन, परिश्रमी, अल्प संततियुक्त, अरिष्ट नाशक एवं सफल कार्य करने वाला होता है। 12. बारहवें भाव में राहु हो तो विवेकहीन, मतिमंद, मूर्ख, परिश्रमी, सेवक, व्ययी, चिंतनशील एवं कामी होता है।
कुंडली के बारह भाव में केतु का फल
लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी तथा वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है।2. दूसरे भाव में हो तो राजभीरू, विरोधी होता है। 3. तीसरे भाव में केतु हो तो चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है। 4. चौथे भाव में हो तो चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है। 5. पांचवें भाव में हो तो कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है। 6. छठे भाव में हो तो वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है। 7. सातवें भाव में हो तो मतिमंद, शत्रुभीरू एवं सुखहीन होता है। 8. आठवें भाव में हो तो दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्री द्वैषी एवं चालाक होता है। 9. नौवें भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है। 10. दसवें भाव में हो तो पितृ द्वैषी, भाग्यहीन होता है।11. इस स्थान में केतु हर प्रकार का लाभ देता है। जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी एवं उदर रोग से पीड़ित रहता है। 12. इस भाव में केतु हो तो उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की मिजाज होता है।–: नोट यह ग्रहों का साधारण फल है विशेष के लिए ग्रहों के बलाबल और लग्न के अनुसार फलादेश करना चाहिए।
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