बाल श्रम की रोकथाम, हम सब का है काम: डॉ नीरज के पवन

0
61

बाल श्रम रोकथाम के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश में बाल श्रम हो रहा है। बच्चे, चूड़ी बनाने के कारखानों, आरी तारी और ईंट भट्टो आदि जगहों पर काम कर रहे हैं।बच्चों का न केवल बचपन छिन रहा है बल्कि प्रतिकूल जगहों पर काम करने और कई घण्टे बिना कुछ खाये पीये, उचित सुविधाओ के अभाव के चलते बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो रहा है । कोविड महामारी के कारण गांव और शहर में रोजगार घटा है, चौराहों पर भीख मांगने वाले बच्चे पहले से ज्यादा नजर आते है, श्रम विभाग इस पर कार्यवाही इसलिए नही करता क्योंकि इनका नियोक्ता नहीं मिलता है। सेव द चिल्ड्रन द्वारा विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर आयोजित वेबिनार में राजस्थान, मध्य प्रदेश एवम महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के स्वयं सेवी संगठनों के प्रतिनिधियों, सरकारी विभागों के अधिकारियों औऱ बाल प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए राजस्थान के श्रम सचिव डॉ नीरज के पवन ने आगे कहा कि बाल श्रम की रोकथाम किसी एक विभाग के प्रयासों से संभव नहीं है। इसके लिए हम सभी को सतत और मिले-जुले प्रयास करने होंगे। कोविड के कारण परिवारों को स्वास्थ्य और आर्थिक संकटों का मुकाबला करना होगा और इस कारण बाल श्रम, बाल तस्करी की घटनाओं की संभावना में बढ़ोतरी होगी। हमें बाल श्रम उन्मूलन को एक दिन या कुछ हफ़्तों के अभियान के रूप में नहीं देखना चाहिए। सरकार कड़े कदम उठा रहीं है कि किसी भी स्थिति में 14 वर्ष तक का बच्चा, किसी भी नियोजन में ना रहे, वो स्कूल जाये और किसी नियोक्ता के पास मिले तो उस नियोक्ता पर कड़ी कार्यवाही हो। वेबिनार में भाग लेते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फ़िल्म निर्देशक ब्रह्मानंद सिंह ने कहा कि आजादी के 73 वर्ष बीत जाने के बाद भी हम बाल श्रम को खत्म नहीं कर पाये, यह चिंता का विषय है, बच्चे पढ़ाई की जगह मजदूरी कर रहे है। यह असहनीय है, क्या बाल मजदूर सरकार और योजना निर्माताओ को नजर नही आते है। ब्रह्मानंद में अपनी हाल ही में बनाई फ़िल्म ‘झलकी’ का उदाहरण देते हुए कहा कि उद्योगों में संगठित गिरोह बाल मजदूरों की सप्लाई में लगे है और राजनैतिक सांठगांठ और कांनूनो की अवहेलना एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए। कोविड के कारण गांवो में बच्चों को सुविधाएं इसलिए नही मिल पा रही है कि उनके पास पहचान पत्र नहीं है, सरकार इन्हें तुरंत लाभ पहुचाए।बाल अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित बिजलपुरा टोंक के बाल प्रतिनिधि शैलेन्द्र सिंह ने कहा कि कोविड के कारण स्कूल बंद है, गांवो में बच्चों को पशु चराई जैसे कामों में, खेती के कामों में लगा दिया गया है। गरीबी के कारण परिवार ढाबों, होटलों, फैक्टरियों जहाँ भी जरुरत होगी, बच्चों को काम मे लगा देंगे। इस समय बच्चे डरे ओर सहमे हुए है उन्हें भविष्य की चिंता सता रहीं है। हमनें चांद तक जाने का विज्ञान विकसित कर लिया लेकिन सड़क पर गुजारा करने वाले बच्चे हमें दिखाई नहीं देते हैं। लॉक डाउन के कारण बच्चों को भारी दिक्क़ते आई है, स्कूल बंद है, ऑनलाइन पढ़ाई गांवों में आज भी सपना ही है, मिड डे मिल भी बन्द है तो बच्चा गरीबी, भूखमरी और असुरक्षा में जी रहा है। बाल शोषण की घटनाओं में बढ़ोतरी हुए है। बच्चे वोट नहीं देते है तो क्या सरकार की प्राथमिकता में बच्चों की जरूरतें शामिल नहीं होंगी?अंतरराष्ट्रीय श्रम संघटन के बाल श्रम विशेषज्ञ इंसाफ निजाम ने कहा कि हमें बाल श्रम की समस्या को जड़ से समझना होगा, इसके कारण ओर निवारण दोनों सिरों पर मजबूती आए और दूरदृष्टि से काम करना होगा। कोविड के कारण अचानक आई परिस्थितियों से लोग विस्थापित हुए है और बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इस समय एक शहर, एक राज्य या एक देश से ऊपर उठकर हमें गरीबी औऱ स्वास्थ्य संकट को विश्व व्यापी दृष्टि से देखना होगा और सुदृढ रणनीति के तहत सरकारों को काम करना होगा। सिस्टम की कमियों को दूर करते हुए बच्चों के हित मे कदम बढ़ाने होंगे। परिवारों के पास पैसा नहीं है, काम नहीं हैं, भविष्य का पता नहीं है, ऐसे में सरकारी सहायता अविलम्ब मिलनी चाहिए। मध्य प्रदेश सहायक श्रम आयुक्त जास्मिन अली ने बताया कि कपास की खेती एवम अन्य कामों में लगे बाल श्रमिकों के पुनर्वास ओर उचित देखभाल के लिये विशेष योजनाएं संचालित की जा रही है। बाल श्रम की रोकथाम के विशेष अभियान चलाए जा रहे है। बच्चों से जबरदस्ती काम करवाने वाले नियोजकों पर भारी पैनल्टी लगाई जा रही है। हर जिले और विकास खंड स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया गया है। रेड़ियो एवम टेलीविज़न के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। बाल श्रम रोकथाम जागरूकता अभियान ( सी ए सी एल) के समन्वयक मैथ्यू फिलिप ने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति के लिये 2025 तक सम्पूर्ण बाल श्रम उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है, परंतु इसे पाने के लिए प्रयास कहाँ किये जा रहें है ? प्रवासी मजदूरों के साथ- साथ इनके बच्चों की स्थिति बेहद खराब हैं। सरकार के तमाम दावे धरातल पर खोखले साबित हो रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने की बातें की जा रही हैं, लेकिन क्या गांवो में बच्चों के पास सुविधाएं हैं? केरल के आदिवासी क्षेत्र में एक होनहार छात्रा ने आत्म हत्या इसलिये कर ली कि उसके पास ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एंड्राइड फ़ोन नहीं था। बच्चे कोविड त्रासदी का शिकार हो रहे है। सेव द चिल्ड्रन मुख्य कार्यालय के उप निदेशक प्रभात कुमार ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए राष्ट्रीय एवम राज्य स्तरीय बाल श्रमिकों की समस्या के उन्मूलन के समेकित प्रयासों पर जोर देते हुए कहा कि बच्चों वाकई जरूरतों को नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए। बच्चों के कोमल मन पर अनिश्चितता का दबाव व तनाव बढ़ रहा है। माता- पिता इन्हें अनसुना नहीं करें और सरकार की सुविधाएं बच्चों तक पहुँचे। सेव द चिल्ड्रन के पश्चिमी क्षेत्रीय निदेशक संजय शर्मा ने कहा कि यह वेबिनार मंच के तौर पर बच्चों की आवाज बुलंद करने का एक प्रयास है।बाल मजदूरी की रोकथाम हम वसभी की प्राथमिकता होनी चाहिए और किसी भी किस्म की ढील देना अनुचित है। विश्व बल श्रम निषेध दिवस पर आयोजित वर्क : नो चाइल्ड बिज़नेस कार्यशाला में देश भर के स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, सरकारी अधिकारियों व बाल प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here