सनातन संस्कृति में दान का विशेष महत्व बताया गया है तथा वेदिक काल से लेकर अब तक जहां कहीं भी दान की महिमा की चर्चा हो और महर्षि दधीचि का नाम ना हो तो वो कथा पूर्ण हो ही नहीं सकती। देवताओं व धर्म की रक्षा के लिए इन्द्र के वज्र निर्माण के लिए महर्षि दधीचि ने अपने शरीर का त्याग कर हड्डियों तक का दान कर दिया जिससे देवराज इन्द्र के अस्त्र वज्र का निर्माण हुआ और देवताओं ने आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त की। कोरोना महामारी संक्रमण काल में जहां इस वैश्विक महामारी ने अपना विकराल रूप धारण किया तथा सम्पूर्ण विश्व में आतंक और मौत का पर्याय बन गई तब शुरू हुआ लॉकडाउन का दौर। हर देश में सरकारों ने लॉकडाउन के माध्यम से लोगों को घर में रहने का आह्वान किया जिससे इस महामारी पर अंकुश लगाया जा सके तथा संक्रमण की श्रृंखला को तोडकर इस पर विजय प्राप्त की जा सके। लेकिन इस विषय में सबसे बडी बाधा बनकर उभरी की रोज कमा कर खाने तथा अपने परिवार के भरण-पोषण करने वाले लोगों का क्या होगा। लेकिन अन्य देशों के लिए मानवता की मदद का उदाहरण बनकर उभरे भारत में हर देशवासी व समर्थ व्यक्ति ने आगे बढकर अपने आपको सहयोग हेतु प्रस्तुत किया। जिससे जितना बन पड सका उसने अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखी जिससे सरकारों का काम आसान हुआ व विपत्ति के समय में भी कोई भूखा नहीं सोया। इसी श्रृंखला में महर्षि दधीचि के वंशजो ने मालपुरा में ऐसा ही कमाल कर दिखाया। संख्या में छोटा सा समाज लेकिन काम इतना बडा कि देखने-सुनने वालों के लिए अनुकरणीय बन गया। दधीचि समाज बंधुओं ने सौश्यल मीडिया के जरिए संक्रमण काल में जरूरतमंदो की मदद के लिए समाज का आह्वान किया तो समाजबंधुओं ने दोगुना उत्साह दिखाते हुए 100 से अधिक खाद्य सामग्री के किट तैयार किए व प्रशासन की सहायता से जरूरतमंदो में बांटने का निर्णय हुआ। यहीं नहीं इस पावन अभियान में सामाजिक एकता का भाव प्रदर्शित करने के लिए सम्पूर्ण समाज के परिवारों की स्क्रीनिंग की गई व मॉस्क वितरण किया गया, सामूहिक रूप से सुंदरकांड पठन किया गया तथा सभी परिवारों ने अपने-अपने आवासों पर मूक व बेजुबान पक्षियों के लिए दाना-पानी का इंतजाम करते हुए परीण्डे बांध कर एक अनूठा व सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया। इस पुनीत कार्य में सभी समाजबंधुओं ने बढ-चढकर अपना योगदान दिया।