आगामी विधानसभा चुनावों के लिए सम्पूर्ण प्रदेश में निर्वाचन विभाग की ओर से दौरा किए जाने के बाद अब किसी भी क्षण आचार संहिता की घोषणा किया जाना संभव है। जिसके चलते प्रदेश सहित विधानसभा क्षेत्र में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो गई है। गांव-ढाणियों, चौपाल आदि पर मतदाताओं में विधानसभा चुनाव चर्चा का विषय बन गया है तथा हर व्यक्ति अपने-अपने हिसाब से पार्टियों एवं प्रत्याशियों का विश£ेष्ण करते नजर आने लगा है। मालपुरा-टोडारायसिंह विधानसभा क्षेत्र में दोनों ही प्रमुख राजनैतिक पार्टियों भाजपा व कांगे्रस की ओर टिकिट मांगने वाले प्रत्याशियों की सूची लम्बी होती जा रही है लेकिन ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमाने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। दोनों पार्टियों की ओर से टिकिट नहीं मिलने की दशा में कई नेता निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी भाग्य आजमाने को आतुर है। मालपुरा विधानसभा क्षेत्र में पूर्व में मिली सफलताओं के रिकार्ड के चलते नए प्रत्याशियों की नजरे अंत में आकर इस सीट पर ठहरने का आधार बनी हुई है चाहे पार्टी से टिकिट मिले या फिर नहीं। हालांकि दोनों ही राजनैतिक पार्टियों में टिकिट देने से पूर्व चाल, चरित्र व चेहरा देखने के लिए कई तरह की कमेटियों का गठन किया जाता है जो अपना काम करने के हुनर में माहिर होती है। फिर भी मालपुरा-टोडारायसिंह विधानसभा क्षेत्र से भाग्य आजमाने के लिए कई स्थानीय व बाहरी प्रत्याशी लालायित दिखाई दे रहे है। ग्रामीण क्षेत्रों में धूल के गुबार उडाते नेताओं के काफिले ग्रामीणों से रूबरू होकर जनसमस्याओं पर चर्चा कर रहे है तथा अपने आपको दावेदार बताते हुए मतदाताओं को साधने में लगे हुए है। दोनों ही राजनैतिक दलों में ग्राउंड रिपोर्ट का खासा महत्व होने के कारण नेता गांव-ढाणियों की ओर रूख कर रहे है जिससे सर्वे सहित आमजन की जबान पर उनका नाम होने की व्यवस्था बैठ सके। साथ ही सम्पूर्ण विधानसभा क्षेत्र में पोस्टर वार छिडी हुई है। नेताओं द्वारा दीवारों पर स्लोगन, बैनर, हौर्डिंग्स सहित अन्य प्रचार के हथकण्डों का बेहत्तर इस्तेमाल किया जा रहा है। मालपुरा-टोडारायसिंह विधानसभा सीट पर विधानसभा चुनावों में क्षेत्र की समस्याओं से अधिक जातिगत समीकरणों का खासा प्रभाव नजर आता है। जिसके चलते बडी जातियों के स्थानीय व बाहरी नेता टिकिट पर अपनी-अपनी दावेदारी जता रहे है। सामान्य सीट होने के बावजूद दोनों पार्टियों की सूची के नेताओं में ओबीसी फैक्टर प्रभावी है तथा जिले की चार सीटों पर संतुलन बनाए रखने के लिए राजनैतिक दलों द्वारा जातिगत समीकरणों को साधने के फेर में ओबीसी वर्ग से टिकिट वितरण कर प्रत्याशी का चयन किया जाता रहा है। फिलहाल चुनावी खिचडी की आंच धीमी जरूर है लेकिन आग जल चुकी है तो खिचडी का पक कर तैयार होना भी तय है। किसे टिकिट मिलेगा किसे नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है पर चुनावी तैयारी के दौरान कुछ लोगों का हित सधना लगभग तय है जिसकी चर्चाएं शहर भर में जोरों पर है।