मालपुरा के विजयवर्गीय सदन में शनिवार रात को भव्य भजन संध्या का आयोजन हुआ। इस मौके भगवान कृष्ण एवं स्वामी रामचरण महाप्रभु की झांकी सजाई गई। जिसके भजन संध्या में हिस्सा लेने वाले सभी श्रोताओं ने दर्शन करके धर्म लाभ लिया। भजन संध्या की शुरुआत रामदत त्रिलोक चंद विजयवर्गीय ने दीप जलाकर की। भजन संध्या की शुरुआत गायक कलाकार दीपक ने विनायक वंदना पेश करके की। भजन संध्या में शास्त्रीय संगीतज्ञ बाबा राधेश्याम डिग्गी वाले ने भजन सबसे ऊंची है प्रेम सगाई, रे मन राम नाम रस पीले मधुर स्वरों में पेश किया तो उपस्थित श्रोता भाव विभोर होकर झूम उठे। कार्यक्रम में पवन कोटा, रामनारायण रामस्नेही ने भी प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम में संत दिग्विजय रामस्नेही, भाजपा शहर मंडल अध्यक्ष दिनेश विजय, अखिल भारतीय विजयवर्गीय महासभा टोंक प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष त्रिलोक चंद, महामंत्री सुरेश टहला, प्रहलाद सागरिया, रतनलाल रानोली, राम अवतार शर्मा सहित कई उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन भारती प्रसादी वितरण पर हुआ। संत दिग्विजय रामस्नेही ने कहा कि गुरु ही मोक्ष के द्वार खोलते हैं। गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। संत दिग्विजय रामस्नेही ने उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेते ही कर्म का चयन किया। नन्हें कृष्ण द्वारा जन्म के छठे दिन ही शकटासुर का वध कर दिया, सातवें दिन पूतना को मौत की नींद सुला दिया। तीन महीने के थे तो कान्हा ने व्योमासुर को मार गिराया। प्रभु ने बाल्यकाल में ही कालिया वध किया और सात वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत को उठा कर इंद्र के अभिमान को चूर-चूर किया। गोकुल में गोचरण किया तथा गीता का उपदेश देकर हमें कर्मयोग का ज्ञान सिखाया। उन्होंने कथा कार्यक्रम में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और कंस वध का भजनों सहित विस्तार से वर्णन किया तथा बताया कि मनुष्य जन्म लेकर पाप के अधीन होकर इस भागवत रुपी पुण्यदायिनी कथा को श्रवण नहीं करते तो उनका जीवन ही बेकार है और जिन लोगों ने इस कथा को सुनकर अपने जीवन में इसकी शिक्षाएं आत्मसात कर ली हैं, तो मानों उन्होंने अपने पिता, माता और पत्नी तीनों के ही कुल का उद्धार कर लिया है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गौवर्धन की पूजा करके इद्र का मान मर्दन किया. भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का साधन गौ सेवा है. श्रीकृष्ण ने गो को अपना अराध्य मानते हुए पूजा एवं सेवा की. याद रखो, गो सेवक कभी निर्धन नहीं होता है। श्रीमद्भागवत कथा साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन है। यह कथा बड़े भाग्य से सुनने को मिलती है। इसलिए जब भी समय मिले कथा में सुनाए गए प्रसंगों को सुनकर अपने जीवन में आत्मसात करें, इससे मन को शांति भी मिलेगी और कल्याण होगा। कलयुग में केवल कृष्ण का नाम ही आधार है जो भवसागर से पार लगाते हैं। परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन इस संसार का नियम है यह संसार परिवर्तनशील है, जिस प्रकार एक वृक्ष से पुराने पत्ते गिरने पर नए पत्तों का जन्म होता है, इसी प्रकार मनुष्य अपना पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करता है। भागवत कथा में कहा कि मानव मात्र का कल्याण परमात्मा की शरण में आये बिना सम्भव नही है। प्रभू कथा, मर्यादा व शुद्ध आचरण जीना सिखाती है। विपरीत व संकट से भरी परिस्थितियों में धैर्य पूर्वक सामना करने से संकट दूर हो जाते है। इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने बृजवासियो को धैर्य व मिलजुलकर सामना करने की शिक्षा दी। जिससे उन्होने गिरीराज की शरण लेकर साक्षात् देव दर्शन किये। कथा में गोर्वधन पुजा पर छपन भोग की आकर्षक मनमोहक झांकिया की प्रस्तुति काबिले तारिफ थी।