ग्रामीण आदिवासी गाँव में एक गरीब परिवार के एक ऐसे बच्चे के बारे में जरा सोचिए, जिस परिवार का मुखिया दिहाड़ी मजदूरी करने वाला है और अभी वह कोविड के चपेट से किसी तरह निकला है. उसे कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ा है क्योंकि वह किसी शहर से अभी तालेबंदी के बाद गाँव लौटा है जहाँ लगभग दो महीने से उसके पास कोई आजीविका का साधन नहीं था. कोविड से ग्रसित होने के बाद अभी जल्दी से कोई उसके पास नहीं फटकता. एक बच्चा एनीमिक है और दुसरे का वजन कम है और पहले से ही कुपोषण से पीड़ित है. परिवार एक कमरे के घर में रहता है, खुद को अलग-थलग रखने के लिए कोई जगह नहीं है और दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे नहीं हैं.
ऊपर दर्शायी गयी स्थिति कोई काल्पनिक बात नहीं बल्कि इस देश के कड़ोड़ों लोगों की, वर्तमान की वास्तविकता है. आप जानते हैं कि कोविड की इस दूसरी लहर ने इस बार देश के ग्रामीण क्षेत्रों को भी चपेट में लिया है जहाँ आम तौर पर ढांचागत और संस्थागत स्वास्थ्य तंत्र का और अभाव होता है और सुविधाओं की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होती। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवारों पर इसके प्रभावों को महसूस करना मुश्किल नहीं है. अगर कोविड महामारी के प्रभावों को अन्य तथ्यों और आंकड़ों के संयोजन में देखे, तो कोविड के मामलों में वृद्धि, और गाँवों तक उसका फैलाव गंभीर चिंता का कारण बन जाती है. अगर इसे बच्चों से जोड़ कर देखें तो यह स्थिति और भयावह होती हुई लगती है.
2019 में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-V (NFHS-V) की रिपोर्ट बताती है कि 68.9% बच्चे (6-59 महीने की आयु के) एनीमिक हैं जो NFHS-IV के आंकड़ों से लगभग 13% अधिक है. रिपोर्ट किए गए 22 में से 16 राज्यों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कम वजन और गंभीर रूप से अवरुद्ध वृद्धि दर्ज की गयी है और 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 2015-16 में आयोजित एनएफएचएस-IV की तुलना में पांच साल से कम उम्र के अविकसित बच्चों के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जो बच्चे एनीमिक या कुपोषित हैं उनके लिए कोविड ज्यादा खतरनाक हो सकता है यदि वयस्कों की तरह यह बच्चों को संक्रमित करना शुरू कर देता है.
यह स्पष्ट है कि महामारी के पिछले एक साल के कारण गरीबी बहुत बढ़ी है और उससे पहले से हीं देश में आर्थिक मंदी की स्थिति चली आ रही है. इसके अलावा, खुदरा बाजार में मुद्रास्फीति की दर में बेतहाशा वृद्धि ने लोगों को और गरीब बना दिया है. साथ हीं आंगनवाड़ी और स्कूलों में मिलने वाला पोषाहार भी कोविड के दौरान लगभग बंद रहें हैं जो कई बार वंचित परिवारों के बच्चों के पोषण के लिए एक बड़ा आधार होता है. तो कुल मिलाकर इसका बच्चों के पोषण स्तर पर अधिक प्रभाव पड़ने वाला है क्योंकि गरीबी का बच्चों के पोषण से सीधा जुड़ाव है. अगर गरीबी रेखा से नीचे रह रहे उन 36 प्रतिशत गरीब परिवारों की बात करें तो उनमें लगभग 15 करोड़ बच्चे हैं जो बहुआयामी गरीबी जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता, पानी तक पहुँच, आवास की उपलब्धता आदि शामिल हैं जिसमें कोविड की स्थिति ने करोडों अतिरिक्त बच्चों को इसमें जोड़ दिया है.
यह व्यापक रूप से देखा गया है कि किसी महामारी और आपदा की स्थिति में बच्चों की स्थिति, ज्यादा बिगड़ जाती है. पिछले साल प्रस्तुत की गई सेव द चिल्ड्रन की ग्लोबल रिसर्च रिपोर्ट ‘प्रोटेक्ट ए जेनरेशन’ बताती है कि महामारी के बाद 78% परिवारों की आय में कमी आयी, 56% परिवारों को भोजन के लिए भुगतान करने के लिए संघर्ष करना पड़ा और लगभग 53% गरीब परिवारों ने नकदी की आवश्यकता व्यक्त की. बच्चों पर इसका दुष्प्रभाव बड़ा रहा है जिसमें सीखने की हानि, घर के कामों में बढ़ती भागीदारी, घर पर हिंसा, पौष्टिक भोजन की कमी, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की क्षति और कई अन्य शामिल हैं. यह तब था जब भारत सौभाग्य से कोविड की पहली लहर के दौरान बड़े पैमाने पर संक्रमण से बच गया था। संक्रमण की दूसरी लहर के बाद स्थिति और खराब हो गई है.
कई बच्चे जिन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया है या जो पहले से ही सड़क पर थे या सड़क पर होने जैसी स्थिति में थे, उन्हें दूसरी लहर के कारण गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। स्थितिजन्य रूप से फंसे बच्चों का शोषण करने के लिए, गोद लेने के बहाने तस्करी और उनका शोषण करने, उन्हें बेचने के लिए गिरोह सक्रिय हो गए हैं. हालांकि सरकार और मीडिया ने अवैध गोद लेने के मुद्दे पर और कोविड की वजह से अनाथ हुए बच्चों के मामले में त्वरित और अच्छी पहल की पर बच्चों की भेद्यता से संबंधित कई अन्य मुद्दे हैं जिन पर सरकार द्वारा अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। बाल संरक्षण के लिए उपयुक्त कार्यबल का नियोजन और उनका प्रशिक्षण, ग्राम पंचायत से लेकर जिला और राज्य स्तर तक बाल संरक्षण की व्यवस्था का मजबूतीकरण और उन्हें आवश्यक कार्रवाई करने के लिए वित्त और दक्षता प्रदान करना एक महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है.
अब पिछले एक साल से स्कूल और आंगनबाडी केंद्र लगभग बंद हैं और ग्रामीण इलाकों परिवारों में जहाँ अभी डिजिटल अँधेरा है, वहां बच्चों की पढाई लगभग ठप सी है. बच्चों के लिए यह दोहरे आपदा का समय है जहाँ वे सीखने को लेकर निरंतर गरीब हो रहे हैं. यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 21.4 करोड़ बच्चों के सीखने में तीन चौथाई क्षति हुई है और ऐसा भी कहा जा रहा है कि अब जब स्कूल खुलेंगे, करोड़ों बच्चे कभी स्कूल नहीं लौटेंगे. सीखने की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए और इसके लिए कि स्कूल खुलने पर सभी बच्चे, स्कूल लौटें, शिक्षा विभाग को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे. अगर इस समय बच्चे स्कूल नहीं आ रहें हैं तो क्या स्कूल बच्चों तक नहीं जा सकता. बच्चों को उनके घर तक पाठ्यपुस्तकें और अन्य अध्ययन सामग्री, वर्कशीट, आदि की व्यवस्था करनी चाहिए और शिक्षकों को भी तैनात किया जाना चाहिए ताकि वे सामुदायिक स्तर पर छोटे समूहों में कक्षाएं संचालित करें.
40% बच्चों की आबादी वाले इस देश में जहाँ कोविड के तीसरी लहर के आने की इसकी उच्च संभावना है इसलिए हमें उच्च स्तर की तैयारी की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें, इस देश के भविष्य को वह सब मिले जो उनके विकास के लिए जरूरी है, उनका अधिकार है. हमें देखना होगा कि हमारे बच्चे- हमारी आँखों के तारे कहीं भटक न जाएँ, खो न जाएँ.
ओम आर्य
लेखक सेव द चिल्ड्रन संस्था में राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों के लिए रीजनल एडवोकेसी मैनेजर हैं और ये उनके स्वतंत्र विचार हैं