महेश सेवा सदन के रंगमंच पर बही काव्य की रसधार, देर रात तक जमे रहे श्रोता

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साहित्यालोक संस्थान मालपुरा के तत्वाधान में महेश सेवा सदन में बीती रात्रि सप्तम विराट कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें ख्यातिप्राप्त कवियों ने एक से बढकर एक प्रस्तुतियां दी जिसे सुनने के लिए देर रात तक श्रोता जमे रहे। विश्व विख्यात हास्य कवि स्वर्गीय श्री सुरेंद्र दुबे जी की स्मृति में साहित्यालोक संस्थान की ओर से सप्तम विराट कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध ह्रदयरोग विशेषज्ञ डॉ.जी.एल.शर्मा रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यालोक संस्थान अध्यक्ष डॉ राकेश कुमार जैन ने की एवं विशिष्ठ अतिथि के रूप में पालिका अध्यक्ष आशा-महावीर नामा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गोवर्धन लाल सौंंकरिया एवं उपखंड अधिकारी अजय कुमार आर्य ने शिरकत की। अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्जवलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। कवि सम्मेलन में सर्वप्रथम जयपुर से आई कवियत्री सुमन सुरभि ने मां वीणापाणि की वंदना की। कवियत्री सुमन सुरभि ने काव्य पाठ करते हुए जिसने पहला छन्द सजाकर काव्य को संवारा है, आदि कवि वाल्मीकि को सादर नमन हमारा है से शुुरूआत की। अंतरराष्ट्रीय कवियत्री डॉक्टर कीर्ति काले-दिल्ली ने मंच संचालन करते हुए कवि परिचय करवाया तथा कवियों को मंच पर आमंत्रण देने से पूर्व अपनी शेरों-शायरी से समां बांधे रखा। भीलवाडा से आए हास्य कवि मुकेश पारीक ने अपनी छोटी छोटी कविताओं एवं व्यंग्यों के माध्यम से सदन में मौजूद श्रोताओं को जमकर गुदगुदाया एवं ठहाके लगवाए। गुलाबपुरा के रशीद निर्मोही ने नायिका का श्रृंगार वर्णन करते हुए घरवालो के सामने शादी के प्रस्ताव को अपनी रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया। रशीद निर्मोही ने भू्रणहत्या जैसे संवेदनशील विषय पर भी काव्यपाठ कर भगवान समझे जाने वाले डॉक्टरी पेशे से जुडे लोगों के लिए महत्वपूर्ण संदेश दिया। निर्मोही ने मन मोहिनी मन भावनी बाजार खड़ी थी यह देखते ही नजरें मेरी उस पर पड़ी थी, बेटी घर का नूर है प्यारे बेटी घर का नूर की रचना सुनाई। जिसे उपस्थित श्रोताओं ने भरपूर पसंद करते हुए तालियों की गडगडाहट से अपना समर्थन दिया। कवि अरुण चतुर्वेदी ने संभल जाए समय से ही हम न मजबूर हो जाए, यह रिश्ते आईने से है न चकनाचूर हो जाए, कहीं ऐसा ना हो हम तुम नदी के दो किनारों से, नजर के सामने तो हो दिलों से दूर हो जाए सुनाकर कवि सम्मेलन को नई उंचाईयां प्रदान की। कवि सम्मेलन के सूत्रधार स्थानीय कवि आर एल दीपक ने झूठी काया झूठी माया मांग रहे हैं सारी, चेलों को तुम्बी पकड़ा दी बाबाजी व्यापारी, चेले सब बाबा जी हो गए, बाबा जी घर बारी, चेलों की चमकती चांद केसर तिलक लगाना है व बांसुरी में प्राण राधेश्याम बोलते रहे प्रेम की समाधि में सगाई हो गई राजमहल रुकमणी के दिल राधिका का हो गया राधे प्राणों से भी प्यारी हो गई पर भरपूर दाद पाई। कैलाश मंडेला शाहपुरा ने फिल्मी पैराडियों सुनाकर श्रोताओं को हंसते-हंसते पेट पकडने को मजबूर कर दिया। मंडेला ने अपने चिर-परिचित अंदाज में हमने देखी है इन चुनावों में भभकती बदबू, नाक को बंद किए भक्तों को इल्जाम ना दो, हार को हार ही रहने दो कोई नाम न दो सरीखी कई रचनाएं सुनाई। डॉक्टर कीर्ति काले नई दिल्ली ने जननायकों के लिए शर्त अनिवार्य हो कि उनको स्वदेश पर मान होना चाहिए, भारतीय सभ्यता को जानने के साथ-साथ इतिहास का भी उन्हें ज्ञान होना चाहिए, भारतीय भाषा में भी लिखता हो बोलता हो, भारतीयता की पहचान होना चाहिए, देश में ही जन्म लेकर देश में पला बढ़ा हो ऐसा देश भक्त ही देश का प्रधान होना चाहिए सुनाकर श्रोताओं का भरपूर समर्थन पाया। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में श्रोताओं के साथ-साथ अतिथि एवं अधिकारी जमे रहे।

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