केन्द्रीय भेड एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में 16 से 22 अगस्त 2021 तक संस्थान में गाजर घास उन्मूलन सप्ताह का प्रारंभ करते हुए संस्थान निदेशक डॉ अरुण तोमर ने कहा कि गाजर घास के लगातार संर्पक में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि की बीमारियां हो जाती हैं। पशुओं के लिए भी यह खतरनाक है।
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इससे उनमें कई प्रकार के रोग हो जाते हैं एवं दुधारू पशुओं के दूध में कडवाहट आने लगती है। पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में इसे चर लेने से उनकी मृत्यु भी हो सकती है। अत: उन्होंने सभी अधिकारियों/कर्मचारियों एवं पशु पालकों से अपील कि है कि आपको संस्थान एवं जहां भी गाजर घास नजर आये उसको जड़ से नष्ट कर दे।
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इस अवसर पर डॉ एस सी शर्मा, प्रभारी फार्म अनुभाग ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि इस खरपतवार का भारत में प्रवेश तीन दशक र्पूव अमेरिका या कनाडा से आयात किये गये गेहूं के साथ हुआ। अल्पकाल में ही लगभग पांच मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में इसका भीषण प्रकोप हो गया। यह पौधा 3-4 माह में ही अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है और र्वष भर उगता और फलता फूलता है।
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यह हर प्रकार के वातावरण में तेजी से वृद्धि करता है। इसका प्रकोप खाद्यान्न, फसलों जैसे धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मटर तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली, सब्जियों एवं उद्यान फसलों में भी देखा गया है। इसके बीज अत्यधिक सूक्ष्म होते हैं, जो अपनी दो स्पंजी गद्द्यिों की मदद से हवा तथा पानी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते हैं।
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इस अवसर पर डॉ राघवेंद्र सिंह, श्री सुरेश कुमार, डॉ एस आर शर्मा, डॉ एफ ए खान, डॉ आर सी शर्मा के साथ संस्थान के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे। तरुण कुमार जैन ने जानकारी दी।