बीते पांच सालों में करोडों रूपयों की लागत से क्षेत्र में विकास का दावा करने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए अत्यन्त शर्म का विषय है कि आज भी क्षेत्र की 36 ग्राम पंचायतों में से लगभग 26 ग्राम पंचायतों में आज भी परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है। खास बात यह है कि इन गांवो में कभी बस सेवा संचालित थी लेकिन जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से यह सेवाएं बन्द हो गई जो ग्रामीणों के लिए खाज में कोढ बन गई है। ग्रामीणों को कई बार रोगियों एवं गंभीर रोगियों को चिकित्सा सेवाओं का लाभ लेने सहित अन्य जरूरी कार्यो के लिए दूसरे साधन-सम्पन्न लोगों की जी-हुजुरी पर आश्रित रहना पडता है। इन गांवो में निवास करने वाली जनता आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से ग्रसित है ऐसे में किसी भी पार्टी की सरकार हो या कोई भी जनप्रतिनिधि हो आखिर इनसे किस मुंह से अपने पक्ष में मत देने के लिए कह सकता है जबकि परिवहन सेवा हर व्यक्ति के लिए प्रतिदिन एक आवश्यक गतिविधि है जिसके जरिए वो एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन करता है। राज्य सरकार की ओर से ग्रामीण परिवहन सेवा, लोक परिवहन सेवा के नाम पर राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम को कमजोर करने का काम तो किया गया लेकिन इन निजी सेवाओं को ग्रामीण क्षेत्र से जोडने का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया जिससे आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में आजादी से पूर्व के हालात दिखाई देते है। उपखंड क्षेत्र में आंटोली, आवडा, बरोल, चबराना, चावण्डिया, देशमा, देशमी, झाडली, कचौलिया, किरावल, कुराड, कांटोली, मलिकपुर, मोरला, नगर, राजपुरा, रीण्डलिया, सिन्धौलिया, सीतारामपुरा सोडा-बावडी सहित लगभग 20 से अधिक ऐसी ग्राम पंचायते है जो आज भी परिवहन सेवाओं से वंचित है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन के साधनों का अभाव चंहुमुखी विकास के आंकडों को मुंह चिढाता नजर आता है।