साथियों, व्रत दो तरह के होते है सकाम व्रत और निष्काम व्रत । मन की इच्छा पूर्ति हेतु किया जाने वाला व्रत काम्य(सकाम) व्रत कहलाता है । प्रत्येक व्यक्ति कोई भी व्रत करे व्रत करने का शुभ फल ही प्राप्त होता है लेकिन जजरूरत है उस व्रत के नियम पालन की । प्रमादवश या किसी अन्यकारण से व्रत नियम मे त्रुटि होने पर व्रत अशुभ फल करता है । इसलिये जो भी व्रत शुरू करे पहले उसके नियम जान लेने चाहिये । हम यहां सभी व्रतों मे ध्यान रखने योग्य बाते जानेंगे जिससे व्रत का शीघ्र और पूर्ण फल प्राप्त हो । व्रत का अर्थ है संकल्प । संकल्प- दुर्गुणो और अन्न का परित्याग करने का ।
प्रत्येक व्रत प्रात:काल सुर्योदय से शुरू होता है और सुर्योदय पर समाप्त। रात को 12:00 बजे किसी भी व्रत का आरम्भ और समापन नही होता ।
व्रत के दिन सुर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प करके अपने आराध्य देव की पूजा करनी चाहिये । दन्तधावन नही करना चाहिये। पहले दिन शयन से पूर्व दातून कर लेना चाहिये । व्रत के दिन कॉलगेट आदि पेस्ट से दातुन नही करना चाहिये ।
व्रत के दिन सुर्यास्त से पूर्व एक समय भोजन करें । भोजन
भगवान को भोग लगाने के बाद, जमीन पर आसन लगाकर बैठकर करें । डाइंनिंग टेबिल पर भोजन करने से व्रत खण्डित हो जाता है । एक बार के पान, गुटखा,सुपारी,तंबाकू खाने से व्रत नष्ट हो जाता है ।
दिन मे सोने से और मैथुन से व्रत नष्ट होता हैं । व्रत के दिन चाय नही पीना चाहिये । चाय की उत्पत्ति रक्त से हुई मानी जाती है । बार बार पानी नही पीना चाहिये । पानी पिये बिना न रहा जाय तो एकवार (कंठ सुखनेपर ही ) पानी पी लेना चाहिये, कष्ट के समय पानी पीने से व्रत/उपवास नष्ट नहीं होता ।
बल और राग उत्पन्न करनेवाली वस्तुओं (टी.वी- सीनेमा,रेडी़यो,विड़ीयो गेईम आदि का उपयोग न करें । फोन पक अधिक बाते न करें । नास्तिकों से बोलना, झूठी बातें बनाना एवं गंदी बातें करना निषेध है । झूठ नही बोलना चाहिये । मन और वाणी से पाप नही होना चाहिये ।
पतित, चरित्रहीन आदि के दर्शन हो जाने पर कहा हैं पतित आदि का दर्शन हो जाने पर भगवान सूर्यनारायण का दर्शन करने पर दोष मिट जाता है । -: भगवान विष्णु
यदि व्रत दान और क्रिया आदि में वाणी के यम (मौन) का लोप हो जाय तो वैष्णव मंत्र का जप अथवा भगवान विष्णु का ध्यान करें । जिस व्रत में जो पूजादि कही हैं सूतक आदि होने पर वह दूसरे से करवाँ दे, शरीर के नियमो को स्वयं करे।
नियम के साथ व्रत करने पर ही व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है इंद्रियो के वशीभूत होकर नियम तोडने पर निश्चय ही व्रत का अनिष्ट फल प्राप्त होता है ।
बहुत कालके व्रत का संकल्प लिया हो तो सूतक और मृत्यु में वह व्रत दषित नहीं होता । दीर्घव्रत के प्रारम्भ में यदि स्त्री रजोवती हो जाय तो उसका व्रत नहीं रुक सकता, प्रतिनिधि से करवा देना चाहिये ।
भार्या पत्युर्व्रतं कुर्याद्भार्यायाश्च पतिर्व्रतम् ।
असामर्थ्ये परस्ताभ्यां व्रतभङ्गो न जा़यते ।
भार्या पति का, और पति भार्या का व्रत कर दे, इनके सामर्थ्य न होनेपर दूसरे के व्रत करने से व्रत भंग नही होता ।स्कन्द पुराण में कहा हैं कि- नम्रतायुक्त पुत्र,बहन, भ्राता इनको अथवा इनके अभाव. में ब्राह्मण को प्रतिनिधि करना चाहिये । स्त्रियों को पति की आग्या के बिना व्रत करना महादोष माना गया है ।
दिनत्रयं न भुञ्जीत मुण्डनं शिरसोऽथवा ।
प्रायश्चित्तमिदं कृत्वा पुनरेव व्रती भवेत् । स्कंदपुराण ।
क्रोध, प्रमाद, और लोभ के कारण यदि व्रतभंग हो जाय तो तीन दिन भोजन न करना चाहिये, अथवा शिर का मुंडन ही करवा लेना चाहिए।
साँवलिया ज्योतिष सन्स्थान
आचार्य प,राजेश शास्त्री
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