भारतीय संस्कृति ज्ञान, कर्म और भक्ति का संगम है। इनकी अपनी अपनी महत्ता है कोई ज्ञान के आधार पर अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढता है तो तो कोई कर्म को अपना माध्यम बनाता है तो कोई भक्ति भाव को आधार बनाकर मुक्ति पाना चाहता है। ज्ञान, कर्म और भक्ति में भक्ति को सहज और शीघ्र प्राप्ति वाला मार्ग बताया गया है। गीता में भी श्री कृष्ण भगवान् जब अर्जुन को समझाते समझाते थक गए तब बोलते है —
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज।अहं तवां सर्वेपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
सब धर्मो को त्याग कर एकमात्र मेरी ही शरण में आ जाओ। मैं तुम्हे समस्त पापो से मुक्त कर दूंगा। तुम डरो मत। इस प्रकार अपनी शरण में आये भक्त का पूरा उत्तरदायित्व भगवान् अपने ऊपर ले लेते है और उसके समस्त पापो को क्षमा कर देते है।
इसी प्रकार इष्टदेव को जानकार उनकी ही शरण में जाने से इस मर्त्यलोक में जाने अनजाने में हमारे और आपके द्वारा किये गए पाप शीघ्र ही दूर हो जाते है।
कैसे करें ? इष्टदेव की पहचान
भक्ति और आध्यात्म से जुड़े अधिकांश लोगों के मन में हमेशा यह प्रश्न उठते रहता है मेरा ईष्टदेव कौन है और हमें किस देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
किसी भक्त के प्रिय शिव जी हैं तो किसी के विष्णु तो कोई राधा कृष्ण का भक्त है तो कोई हनुमानजी का। और कोई कोई तो सभी देवी देवताओ का एक बाद स्मरण करता है। परन्तु एक उक्ति है कि “एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय”। जैसा की आपको पता है कि अपने अभीष्ट देवता की साधना तथा पूजा अर्चना करने से हमें शीघ्र ही मन चाहे फल की प्राप्ति होती है।
आज मैं इस लेख के माध्यम से आपके अन्तर्मन् में उठने वाले सवालों का जबाब देने की कोशिश कर रहा हूँ।
इष्टदेव कैसे दिलाते हैं सफलता
अब प्रश्न होता है कि देवी देवता हमें कैसे लाभ अथवा सफलता दिलाते हैं वस्तुतः जब हम किसी भी देवी-देवता की पूजा करते है तो हम अपने अभीष्ट देवी देवता को मंत्र के माध्यम से अपने पास बुलाते है और आह्वाहन करने पर देवी देवता उस स्थान विशेष तथा हमारे शरीर में आकर विराजमान होते है ।
वास्तव में सभी दैवीय शक्तियां अलग-अलग निश्चित चक्र में हमारे शरीर में पहले से ही विराजमान होती है आप हम पूजा अर्चना के माध्यम से ब्रह्माण्ड सेउपस्थित दैवीय शक्ति को अपने शरीर में धारण कर शरीर में पहले से विद्यमान शक्तियों को सक्रिय कर देते है और इस प्रकार से शरीर में पहले से स्थित ऊर्जा जाग्रत होकर अधिक क्रियाशील हो जाती है। इसके बाद हमें सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
ज्योतिष के माध्यम से हम पूर्व जन्म की दैवीय शक्ति अथवा ईष्टदेव को जानकर तथा मंत्र साधना से मनोवांछित फल को प्राप्त करते है
इष्टदेव निर्धारण के विविध आधार
ईष्टदेव को जानने की विधियों में भी विद्वानों में एक मत नही है। कुछ लोग नवम् भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर ईष्टदेव का निर्धारण करते है।
वही कुछ लोग पंचम भाव और उस भाव से सम्बन्धित राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर ईष्टदेव का निर्धारण करते है।
कुछ विद्वान लग्न लग्नेश तथा लग्न राशि के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है।
त्रिकोण भाव में सर्वाधिक बलि ग्रह के अनुसार भी इष्टदेव का चयन किया जाता है।
महर्षि जैमिनी जैसे विद्वान के अनुसार कुंडली में आत्मकारक ग्रह के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करना चाहिए।
अब प्रश्न उठता है कि कुंडली में आत्मकारक ग्रह का निर्धारण कैसे होता है ? महर्षि जेमिनी के अनुसार जन्मकुंडली में स्थित नौ ग्रहों में जो ग्रह सबसे अधिक अंश पर होता है चाहे वह किसी भी राशि में कयों न हो वह आत्मकारक ग्रह होता है।
इष्टदेव का निर्धारण पंचम भाव के आधार पर
ईष्टदेव ( या देवी का निर्धारण हमारे जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से होता है। ज्योतिष में जन्म कुंडली के पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित धर्म, कर्म, ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा,भक्ति और इष्टदेव का बोध होता है। यही कारण है अधिकांश विद्वान इस भाव के आधार पर इष्टदेव का निर्धारण करते है।नवम् भाव सेउपासना के स्तर का ज्ञान होता है ।
हालांकि यदि आप अपने इष्टदेव निर्धारण नहीं कर पा रहे तो बिना किसी कारण के ईश्वर के जिस स्वरुप की तरफ आपका आकर्षण हो, वही आपके ईष्ट देव हैं ऐसा समझकर पूजा उपासना करना चाहिए।
पंचम भाव में स्थित ग्रह के आधार पर इष्ट देव का चयन
सूर्य- विष्णु तथा राम
चन्द्र- शिव, पार्वती, कृष्ण
मंगल- हनुमान, कार्तिकेय, स्कन्द,
बुध- दुर्गा, गणेश,
वृहस्पति- ब्रह्मा, विष्णु, वामन
शुक्र- लक्ष्मी, मां गौरी
शनि- भैरव, यम, हनुमान, कुर्म,
राहु- सरस्वती, शेषनाग, भैरव
केतु- गणेश, मत्स्य
पंचम भाव में स्थित राशि के 🌹आधार इष्टदेव का निर्धारण
मेष: सूर्य, विष्णुजी
वृष: गणेशजी।
मिथुन: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कर्क: हनुमानजी।
सिह: शिवजी।
कन्या: भैरव, हनुमानजी, काली।
तुला: भैरव, हनुमानजी, काली।
वृश्चिक: शिवजी।
धनु: हनुमानजी।
मकर: सरस्वती, तारा, लक्ष्मी।
कुंभ: गणेशजी।
मीन: दुर्गा, सीता या कोई देवी।
उपर्युक्त विधि के आधार पर अपने इष्ट देव का चयन करने के बाद आपको निर्धारित देवी देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए और अपने अंदर की ऊर्जा को जाग्रत कर स्वयं तथा समाज का कल्याण करना चाहिए।
साँवलिया ज्योतिष सन्स्थान आचार्य प,राजेश शास्त्री
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