मालपुरा शहर के प्रमुख शिक्षाविद् उमेश चन्द्र श्रीवास्तव सेवानिवृत व्याख्याता ने सोमवार को एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर के शरीर रचना विभाग में उपस्थित होकर क्रमांक संख्या 1941 पर डाटा इन्द्राज करवाते हुए विभागाध्यक्ष डा्. चन्द्रकला अग्रवाल के समक्ष देहदान प्रक्रिया को पूर्ण किया। खास बात यह रही कि इस अवसर पर साक्षी के रूप में उनकी पुत्री आयुषी श्रीवास्तव व सुनील कुमार सिंह पुत्र स्व.भोजराज सिंह रहे। श्रीवास्तव के परिवार में एकमात्र पुत्री आयुषी ही उनकी वारिस है। उनकी धर्मपत्नी शशिप्रभा का पूर्व में ही निधन हो चुका है। उमेश चन्द्र श्रीवास्तव शिक्षा जगत का एक ऐसा चिर-परिचित नाम है। श्रीवास्तव शिक्षा जगत में अंग्रेजी विषय के व्याख्याता के पद पर कार्यरत रह कर अपनी राजकीय सेवाएं दे चुके है तथा वर्तमान में सेवानिवृति के बाद समाज सेवा के कार्यो में सक्रिय है। मूलत: लखनउ के रहने वाले श्रीवास्तव ने अपने जीवन का लम्बा समय मालपुरा में शिक्षाविद के रूप में कार्य करते हुए बिताया तथा यही के निवासी होकर रह गए। इस अवसर पर नवज्योति से खास बातचीत करते हुए श्रीवास्तव ने बताया कि कोरोना काल में भारतीय मूल के एक युवक जो अपने परिवार में इकलौती संतान था ने मानव जाति के हित के लिए अपनी देह का कोविड के निदान हेतु वैज्ञानिक परीक्षण के लिए प्रस्तुत किया जिसकी काफी चर्चा टीवी चैनल व समाचार पत्रों के माध्यम से आमजन तक पहुंची। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने तब से ही मानव सेवा व हित के लिए अपनी देह को दान किए जाने की योजना पर विचार किया। लम्बे समय तक प्रक्रिया की जानकारी जुटाई। लेकिन शहर के एक अन्य शिक्षाविद चन्द्रमोहन उपाध्याय द्वारा देहदान प्रक्रिया पूर्ण किए जाने की खबर मिलने पर उन्होंने उनसे सम्पर्क साध कर प्रक्रिया को पूर्ण किया। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण से कई लोगों ने अपनों को खोया, बिना किसी उम्र व रोग के लोग संक्रमित होकर मौत का शिकार बन गए जिससे परिजन स्तब्ध रह गए, मृत लोगों को कंधा तक नसीब नहीं हुआ। ऐसे में संसार की नश्वरता का आभास हुआ व गहरी सोच के बाद निर्णय लिया कि जीते जी तो जो हुआ सो हुआ लेकिन मृत्यु के बाद भी किसी के काम आया जाए। इन्हीं भावनाओं के साथ यह निर्णय लिया। परिवार के विरोधाभास के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि बेटी ने अंतिम संस्कार नहीं किए जाने से मोक्ष नहीं मिलने की बात कही थी लेकिन उसे प्यार से समझाया कि शव का क्रियाकर्म कर पिण्डदान करना मोक्ष का मार्ग नहीं बल्कि मृत्यु के बाद शव भी किसी के काम आ सके इससे बडा कोई परोपकार, सेवा कार्य हो नहीं सकता।