केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर के नवनियुक्त निदेशक डॉ. अरूण कुमार तोमर ने कहा कि संस्थान का मुख्य उद्देश्य किसानों व पशुपालकों के आर्थिक स्तर सुधारने व संस्थान द्वारा विकसित तकनीक का ज्ञान प्रदान करना है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली की ओर से अविकानगर के निदेशक पद पर डॉ. अरूण कुमार तोमर की नियुक्ति के बाद गुरुवार को तोमर ने सभागार में पत्रकारों से वार्ता की। निदेशक तोमर ने कहा कि अविकानगर में किसान व पशुपालकों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए संस्थान द्वारा समय-समय पर नई-नई तकनीक का विकास किया जा रहा है उनके कार्यकाल में संस्थान व किसानों तथा पशुपालकों के मध्य दूरी को कम करने का प्रयास किया जाएगा। संस्थान पशुपालकों के लिए भेड़-बकरी पालन पर विशेष कार्य कर रहा है अविकानगर की अविशान भेड़ से पशुपालक एक बार में दो से तीन मेमने प्राप्त कर अपनी आमदनी को बढ़ा रहा है। भेड़-बकरी पालन पशुपालकों के लिए ऐसा कार्य है जिसमें किसी प्रकार की लागत नहीं है समय-समय पर टीकाकरण करवाकर एक भेड़ पालक हमेशा अपनी भेड़ों को स्वस्थ रख सकता है। भेड़-बकरियों के पालन में पशुपालकों को अधिक खर्च नहीं करना पड़ता है। भेड़ का दूध का प्रयोग आयुर्वेद की दवाईयों में किया जाने लगा है। मनुष्य को ताकतवर बनाने में भी भेड़ का दूध लाभदायक सिद्ध हो रहा है। भेड़ के दूध में फेट 9 प्रतिशत तक आता है। संस्थान द्वारा भैंस पालन के क्षेत्र में भी कार्य किया जा रहा है इसके लिए हरियाणा के हिसार से भैंस के लिए सीमन मंगवाया जाकर संस्थान के कार्यक्षेत्र के चार-पांच गांवों में पशुपालकों को सीमन उपलब्ध करवाकर उनकी भैंसों के ऊपर प्रयोग करवाया गया है जिससे पशुपालकों को लाभ मिला है। संस्थान का उद्देश्य स्वयं द्वारा भैंस का पालन करना नहीं है अपितु पशुपालकों को पशुपालन में आ रही समस्याओं का समाधान करना है। उन्होनें कहा कि राजस्थान का तापक्रम व जलवायु के हिसाब से यहां के पशुपालकों के लिए भेड़-बकरी पालन एक वरदान है लेकिन पशुपालक गाय-भैंस पालन पर विशेष ध्यान दे रहा है। हरियाणा, पंजाब जैसे रायों में जलवायु व तापमान अलग होने से वहां भैंस पालन सही है भैंस पालन के लिए हमेशा तालाबों मे पानी, हरे चारे की व्यवस्था होना आवश्यक है जिसकी राजस्थान में व्यवस्था नहीं हो पाती है। राजस्थान की जलवायु गर्म होने से यहां सफेद व भूरे रंग के पशुओं का पालन करना लाभदायक है। सिरोही नस्ल की बकरियों का पालन करना क्षेत्र के पशुपालकों के लिए लाभदायक सिद्ध हो रहा है। निदेशक डॉ. अरूण कुमार तोमर ने कहा कि अविकानगर संस्थान देश के विभिन्न रायों में अलग-अलग क्षेत्रों में भरतपुर से सरसों, अजमेर से मसाले, काजरी जोधपुर से खेतीबाड़ी, उत्तरप्रदेश के झांसी सहित कई स्थानों से अलग-अलग तकनीकी को संस्थान में लाकर क्षेत्र के किसानों व पशुपालकों तक तकनीक को पहुंचाने का कार्य कर रहा है। संस्थान द्वारा विकसित तकनीक व ज्ञान के प्रयोग से किसान व पशुपालक अपनी आमदनी को दोगुना करने में लगे हुए है। संस्थान में दूबा भेड़ पालन को अधिक विकसित करने का कार्य किया जा रहा है। खरगोश पालन के क्षेत्र में भी संस्थान प्रगति कर रहा है मूर्गी पालन के लिए भी किसानों को प्रेरणा प्रदान कर रहा है। मूर्गी पालन में किसानों को बिना खर्चे के आमदनी हो रही है। किसानों की डिमाण्ड के अनुसार संस्थान द्वारा बीज भी उपलब्ध करवाए जा रहे है जिससे खेती में भी किसानों को मेहनत से कई गुना आय प्राप्त हो सके। संस्थान में उनके द्वारा कृषि विज्ञान केन्द्र खोलने के लिए भी लगातार प्रयास किए जाऐगें। संस्थान मेरा गांव-मेरा गौरव की थीम पर कार्य करेगा। उन्होंने भेड़ पालकों को भेड़ पालन के तरीके में बदलाव लाने की बात कहते हुए कहा कि वर्तमान समय में भेड़ पालन के तरीके में सुधार लाना होगा। संस्थान की ओर से संस्थान में नेपियर घास पैदा की गई है जो एक बार लगने के बाद लगभग आठ से दस साल तक जीवित रहती है लगातार दस सालों तक पशुपालक अपने भेड़-बकरियों को यह घास खिला सकते है। चारे को भी कुट्टी द्वारा काटकर देने से चारा व्यर्थ नहीं जाता तथा पशुओं के लिए चरने में आसानी रहती है। संस्थान द्वारा तैयार किए गए मेमनाप्राश से भेड़ों के मेमनों को देने से मेमनों को भेड़ों का दूध पिलाने की आवश्यकता नहीं है भेड़पालक भेड़ों के दूध को बाजार में बेचकर अपनी आय को बढ़ा सकता है। निदेशक ने संस्थान के कार्य क्षेत्र को अधिक से अधिक गांवों व किसानों तक बढ़ाने की बात कहते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशानुसार किसानों की आय को दोगुना से अधिक करने की रहेगी। इस दौरान उनके साथ संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक पीआरसैल प्रभारी रमेश चन्द शर्मा सहित मालपुरा उपखण्ड मुयालय के पत्रकार मौजूद रहे।