अटल बिहारी वाजपेयी का निधन, 93 साल की उम्र में एम्स में ली अंतिम सांसें

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन गुरुवार शाम 5.05 मिनट पर हो गया। वह 93 साल के थे। अटल जी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वाजपेयी को सांस लेने में परेशानी, यूरीन व किडनी में संक्रमण होने के कारण 11 जून को एम्स में भर्ती किया गया था। 15 अगस्‍त को उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्‍हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया। एम्‍स से उनका पार्थिव शरीर उनके निवास कृष्‍ण मेनन मार्ग पर लाया गया। भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह के अनुसार शुक्रवार को सुबह नौ बजे अंतिम दर्शन के लिए उनके पार्थिव शरीर को भाजपा मुख्‍यालय पर लाया जाएगा और एक बजे अंतिम यात्रा शुरू होगी। शाम चार बजे स्‍मृति स्‍थल पर उनका अंतिम संस्‍कार किया जाएगा। वाजपेयी के निधन से देश की राजनीति के एक सुनहरे दौर का अंत हो गया है. ऐसा दौर जिसमें राजनीतिक मतभेद को मनभेद में बदलने की इजाजत नहीं होती. वाजपेयी लंबे समय तक नेता विपक्ष रहे, तीन बार प्रधानमंत्री रहे, लेकिन उनकी लोकप्रियता किसी पद पर उनके होने या न होने की मोहताज नहीं रही. उनकी स्वीकार्यता जितनी पार्टी के भीतर थी, उतना ही वे दूसरी पार्टियों में भी लोकप्रिय थे. यही वजह रही कि एम्स में उनकी भर्ती की खबर सुन सबसे पहले उनका हालचाल जानने पहुंचने वालों में पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी थे
अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी के कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी थे. भारतीय जनसंघ की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही. वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे. आजीवन राजनीति में सक्रिय रहे अटल बिहारी वजपेयी लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन भी करते रहे. वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित प्रचारक रहे और इसी निष्ठा के कारण उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था. सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उन्होंने अपने संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया. वाजपेयी देश के उन चंद प्रधानमंत्रियों में से एक थे जिन्हें हमेशा उनके बेबाक फैसलों के लिए जाना जाता था. चाहे बात पाकिस्तान से दोस्ती के लिए बस से लाहौर जाने की हो या फिर कारगिल में लड़ाई के फैसले की. वह हमेशा से ही अपने फैसलों पर अडिग रहने वाले नेता थे
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी कवि होने के साथ-साथ स्कूल मास्टर भी थे. वाजपेयी जी ने स्कूल तक की शिक्षा ग्वालियर में ही ली थी. इसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में की. इसके बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र से एमए किया. इस दौरान उन्होंने संघ के कई ट्रेनिंग कैंपों में हिस्सा भी लिया. राजनीति में उनका प्रवेश 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने के साथ हुआ. इस आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से उन्हें और उनके बड़े भाई प्रेम को 23 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. आजादी के बाद वे जनसंघ के नेता बने 1977 में देश की जनता ने कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी को बड़े अंतर से चुनाव में जीत दिलाई. इसके बाद अटल जी को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री बनाया गया. वाजपेयी बतौर विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देने वाले पहले नेता बने थे अटल बिहारी वाजपेयी को वर्ष 2015 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न ने नवाजा. इस सम्मान से पहले भी वाजपेयी जी को पदम विभूषण से लेकर कई अन्य सम्मान प्राप्त हुए बतौर प्रधानमंत्री उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मई 1998 में परमाणु बम का परीक्षण शामिल है. पोखरन-2 के साथ ही उनके कार्यकाल के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्हें आज भी याद किया जाता है

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