केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान के हेड एवं पूर्व कार्यकारी निदेशक डॉ. अरूण कुमार तोमर ने पशुपालको को भेड़ो के बीमार होने की दशा, लक्षण एवं उनके उपचार के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।डॉ. तोमर ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के चलते लॉक डाउन में पशुपालक अपने एवं अपने परिवार के साथ साथ पशुओं के स्वास्थ्य की भी अच्छी देखभाल करें। क्योंकि पशुपालको के लिएपशुओं की मुख्य आय के साधन होते हैं। उन्होंने बताया कि अस्वस्थ भेडों की पहचान कोरोना महामारी के इस दौर में भेड़ पालक अपने स्वास्थ्य के साथ साथ अपने पशुओं का भी ध्यान रखें ताकि उनसे इस आर्थिक सकंट के समय उचित उत्पादन प्राप्त कर परिवार का पोषण स्तर व आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर जीवनयापन कर सके। भेड़ पालन विकट परिस्थितियों जैसे अकाल, औलावृष्टी, बाढ़ आदि से फसल के नष्ट होने पर किसानों के लिए एक सफल जीवन रेखा का काम करता है। लाभदायक भेड़पालन के लिए यह आवश्यक है कि रेवड़ में सभी भेड़ें स्वस्थ हो, तंदरूस्त हो, उत्पादक हो। रेवड़ में बीमार पशुओं की उपस्थिति से न केवल उत्पादकता में कमी आती है बल्कि ऐसे पशुओं की खुराक, उपचार, देखभाल व अन्य व्यवस्थाओं पर भी अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। रोगी पशु की यथा संभव शीघ्रता से पहचान कर न केवल उपचार करने से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सकता है बल्कि अन्य पशुओं में रोगों के फैलाव को भी रोका जा सकता है। रोग के प्रारम्भ में ही निम्न लक्षणों को देख कर अस्वस्थ भेड़ों को पहचान कर रोगी पशुओं का समय रहते उपचार किया जा सकता है-
• बीमार भेड़ों को ठीक से भूख नहीं लगती, चरना व जुगाली करना बंद कर देती है।
• रोगी भेड़ें सिर नीचा करके रेवड़ से अलग खडी रहती है। सुस्त व निष्क्रिय दिखाई
देती है। बड़ी मुश्किल से चलती-फिरती है।
• भेड़ों का शारीरिक वजन लगातार कम होना अस्वस्थ पशुओं का मुख्य लक्षण है।
• अस्वस्थ भेड़ों की चमड़ी सूखी, खुरदरी एवं बाल व ऊन में चमक नहीं होती है।
• आँखों से पानी या मवाद सा निकलता रहता है तथा सिकुडी, धंसी हुई होती है।
• मेंगनी गोलियों के रूप में चमकदार व नर्म ना होकर लेई के समान पतले दस्त,
श्लेष्मा एवं रक्त मिश्रित या बदबूदार होती है।
• रोगी भेड़ों के पेशाब में श्लेष्मा, रक्त का होना व गाढ़ापन लिए होता है।
• शरीर के तापमान में बदलाव (घटत या बढ़त) होना ही अस्वस्थ भेड़ों की पहचान है।
बीमार भेड़ का पता लगाने के लिए भेड़ पालक को प्रतिदिन ध्यानपूर्वक अपने रेवड़ कोसुबह बाड़े में से निकलते हुए देखना चाहिए जिससे अस्वस्थ भेड़ को अलग कर उसका सही समय पर उपचार करवा सके। भेड़ पालक को चाहिए कि वह रेवड़ से थोड़ा दूर खड़े होकर 5-10 मिनट तक लगातार पशुओं के खड़े होने का ढंग, चौकन्नापन, सक्रियता, चाल, कान व पूँछ की गति को देखें। उक्त लक्षण के दिखते ही पशुचिकित्सक एवं विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार ही बीमार भेडों का समय से ही उपचार करना चाहिए।