प्रभु नाम सुमिरन करने मात्र से ही प्राणी का उद्धार संभव:संत दिग्विजय

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मालपुरा के विजयवर्गीय सेवा सदन में चल रही संगीतमय श्रीमद भागवत कथा महोत्सव के चौथे दिन शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण व राम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। कथा वाचक रामस्नेही संत दिग्विजयराम महाराज के सानिध्य में कथा के दौरान जन्मोत्सव प्रसंग आते ही, नंदन के आनंद भयो…, जै कन्हैयालाल की… जयघोष के साथ पूरा पांडाल गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे को श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की बधाइयां बांटी। कथावाचक रामस्नेही संत दिग्विजयराम महाराज ने कहा कि जो भक्ति में लीन रहता है वही भगवान की ओर बढ़ता है और प्रभु भक्ति का वास्तविक सुख प्राप्त करता है। उन्होंने नाम स्मरण का महत्व बताते हुए कहा कि अजामिल ने अपने बेटे के नाम ही नारायण रख दिया था। अंत समय में उसका नाम पुकारने से ही स्वर्ग का भागी बना। उन्होंने कहा कि जिस समय भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, जेल के ताले टूट गये, पहरेदार सो गए। वासुदेव व देवकी बंधन मुक्त हो गए। प्रभु की कृपा से कुछ भी असंभव नहीं है। कृपा न होने पर प्रभु मनुष्य को सभी सुखों से वंचित कर देते हैं। भगवान का जन्म होने के बाद वासुदेव ने भरी जमुना पार करके उन्हें गोकुल पहुंचा दिया। वहां से वह यशोदा के यहां पैदा हुई शक्तिरूपा बेटी को लेकर चले आए। कृष्ण जन्मोत्सव पर नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की गीत पर भक्त जमकर झूमे। कथा व्यास ने कहा कि कंस ने वासुदेव के हाथ से कन्या रूपी शक्तिरूपा को छीनकर जमीन पर पटकना चाहा तो वह कन्या राजा कंस के हाथ से छूटकर आसमान में चली गई। शक्ति रूप में प्रकट होकर आकाशवाणी करने लगी कि कंस, तेरा वध करने वाला पैदा हो चुका है। अंत में कथा व्यास ने भजनों के साथ कृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाया तो श्रद्धालु झूमने लगे। इस दौरान प्रस्तुति की गई श्री कृष्ण के जन्म की झांकी ने भाव विभोर कर दिया। लोगों ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। अंत में आरती के बाद प्रसाद वितरित किया गया। कथा समापन पर रामदत्त त्रिलोकचंद विजय व मुन्नी देवी ने सपरिवार व्यास पीठ की आरती उतारी। इस अवसर पर संयोजक परिवार ने आगंतुकों का समान किया।

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