एसडीएम डॉ. नेगी द्वारा रचित कृतियों पर आयोजित हुई साहित्यिक चर्चा

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राजकीय उ. मा. वि. मालपुरा में राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डॉ. सूरज सिंह नेगी द्वारा रचित कृतियों पर परिचर्चा के लिए प्रबुद्धजनों की एक संगोष्ठी रविवार को आयोजित हुई जिसमें शहर के गणमान्य नागरिक, लेखक, शिक्षाविद्, व जनप्रतिनिधियों मौजूद रहे। कार्यक्रम में टोडारायसिंह के उपखंड अधिकारी डॉ.सूरज सिंह नेगी द्वारा रचित वसीयत, नियतिचक्र पर साहित्यिक चर्चा की गई। कार्यक्रम में का रमाकांत पाठक ने शुरू से लेकर अंत तक उपस्थित प्रबुद्धजनों को अपनी लयबद्धता से बांधे रखा। प्रधानाचार्य गिरधर सिंह ने डॉ.नेगी द्वारा रचित रचनाओं की जमकर सराहना करते हुए बताया कि उनके द्वारा रचित वसीयत, नियतिचक्र कृतियों में कथानक इस तरह का है कि वह शुरू से अंत तक पाठक को बांधे रखता है, व्याख्याता जयसिंह व दीपक गुप्ता ने वसीयत पुस्तक पर पत्रवाचन किया व उनकी दूसरी पुस्तक नियतिचक्र की समीक्षा श्रीमति विमला नागला, डॉ.अजीजुल्लाह सिरानी, डॉ.मनु शर्मा, अमीर अहमद सुमन, अच्युत ठाकुर, शशिकांत पाठक ने की। इस अवसर पर पुस्तक लेखक डॉ.नेगी ने पुस्तक लेखन में संवेग, मानवीय संवेदना, परम्परागत मूल्यों को स्थापित रखने के उमडने वाले भावों को शब्द प्रदान किए जाने की कोशिश अपनी पुस्तकों द्वारा किया जाना संवेदनाओं को स्वरूप दिए जाने का प्रयास मात्र बताया व नई पीढी को पढने के अवसर दिए जाने की आवश्यकता बनाए जाने के प्रयास की बात कही। सीबीईओं स्वामी ने डॉ.नेगी की साहित्य विधाओं में मानवीय मूल्यों का उपयोग कर पुस्तकों के लेखन में सरल शब्दावली का प्रयोग किए जाने की जमकर सराहना की। प्रधानाचार्य गिरधर सिंह ने डॉ.नेगी की पुस्तकों को जीवंत साहित्य के रूप में स्वीकार करते हुए कहा कि नैतिक मूल्यों की सीख देने वाला साहित्य की समाज का सच्चा पथ प्रदर्शक होता है। डॉ.नेगी ने अपने विचार रखते हुए श्रेष्ठ रचनाओं के सृजन को मां वीणापाणि का विशेष आशीर्वाद व परिवारजनों सहित सम्पूर्ण टोंक जिलें में उनसे अपार स्नेह रखने वाले लोगों की शुभकामनाओं को उनकी लेखनी का प्राण व उर्जा का स्त्रोत बताया। डॉ.नेगी ने अपनी रचनाओं में मनुष्य जिस परिवेश में रहता है उसके ईर्द-गिर्द होने वाली घटनाएं, पात्र, वस्तुएं, रिश्तें, भावनाएं आदि परिदृश्यों के संकलन को सृजन का आधार बताया। रचनाओं के लेखन पर सबकी ओर से मिली प्रशंसा एवं श्रेष्ठ लेखन की उपमा को सहज भाव में अपने विचारों को प्रकट कर लिखने का प्रयास मात्र बताया।

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